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Wednesday, March 9, 2011

!! प्रेम से कहो श्री राधे श्री राधे श्री राधे !!


श्रद्धेय श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी महाराज

महाराज श्री कहते हैं कि- 
संसार इच्छाओं का सागर है मनुष्य के अन्दर इच्छाओं की तो कोई कमी नहीं है ये इच्छाएं ही तो हमको अशांत करती रहती हैं !!

कहतें हैं कि " चाह पैसों से आनों में आती रही "
                   "चाह आनों से रुपया बनती रही "
                   "चाह रूपये से नोट बनती रही "
                   "चाह नोटों से कोठी बनती रही "
                   "चाह कोठी में मोटर मंगाती  रही "
                   "चाह मोटर से होटल में जाती रही "
                   "चाह होटल में बोतल भी खुलती रही "
                   "चाह क्या क्या न करती कराती रही "
                   "चाह पाली जिन्होंने वो पीले हुए "
                   "चाह छोड़ी जिन्होंने रसीले हुए "
                   "चाह जर से लगी जी जरा हो गया "
                   "चाह हरि!! से लगी जी हरा हो गया "
                   "चाह उनकी हमें हमेशा चाहिए "
                   "और वो जो चाहें हमें तो फिर  क्या चाहिए "

----------------!! प्रेम से कहो श्री राधे श्री राधे श्री राधे  !!-------------------

Tuesday, March 8, 2011

!! बोलो राधे राधे !!

तू  मुझे ...इस  कदर ...मेरे करीब  लगता है !!

तुझे  अलग से. मै... सोचू तो अजीब लगता है !!

और जिसे न तुझसे मोहब्बत न तेरे हुस्न से प्यार !!

वो शख्स  मुझे बहुत  बदनसीब लगता है !!


-------I'll Never Let U Go..!!--------


------------------राधे राधे -------------



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ज़रा दिल …..की दुनिया सजा कर तो देखो ....!!

इश्क का ……… दीयां ज़ला कर तो देखो .......!!

तुम्हे हो न …..जाये मोहबत …...तो कहना....!!!!

ज़रा प्रभु से…. नज़रें मिला कर तो देखो ..........!!